भाग 1- बेईमानी में भी ईमानदारी
आज सुबह से ही सुनीता बहुत ही खुश थी क्योंकि आज उसकी नौकरी का पहला दिन था और वह खुशी के मारे अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी कई सालों से देखा हुआ उसका सपना आज सच होने जा रहा था वह और उसके पापा उसकी नई नौकरी के लिए सभी तैयारी कर चुके थे उसके पापा ने तो रेलवे या बस की जगह किराए की कार भी बुक करवा दी थी और वह सुबह से सुनीता से कई दफा बता चुके थे कि तू अपने सारे डाक्यूमेंट्स ले लेना चाहे तू अपना और कोई सामान भूल जाएगी तो चलेगा और फिर वहां पर तुझे अपनी नौकरी में आज ही से जॉइनिंग करना पड़े तो मैं सारा सामान बाद में भिजवा दूंगा लेकिन तु अपने सारे डॉक्यूमेंट ले लेना बेटा और सुनीता भी अपने पापा से कहती थी अरे पापा मैंने वह कई दिनों से एक फाइल में ही ईकट्ठा कर रखे हैं आप उसकी चिंता मत कीजिए आप अपनी सेहत की चिंता कीजिए आप अपनी सारी दवाईयां ले लीजिए और सुनीता की मां कहती है कि बेटा वह तो मैंने पहले से ही सब रख दी है तो सुनीता कहती है कि है फिर भी आप आप की किताबें और आपका कोई सामान न छूट जाए ध्यान रखिएगा बाकी सारी चीजें तो हम बाजार से भी ले लेंगे
और इसी तरह दोनों बाप बेटी एक दूसरे की चीजें संभाल कर रखने की बातें कर रहे थे और हंसी छूट रही थी और खुशी के मारे दोनों अपने आप में खुश थे सुनीता की मां ने तो सुनीता के लिए बेसन के लड्डू भी बनवा लिए थे ताकि सुनीता अगर वही नौकरी में ज्वाइन हो जाए तो उनके खाने की अगर कोई व्यवस्था ना हो तो वह लड्डू उसे काम आ सके और बाकी बहुत सारा नाश्ता भी तैयार करके उसके डिब्बे भी रखवा दिए थे अब कुछ कुछ चीजें याद आ रही थी वह भी उसकी मां उसे संभाल कर ले जाने की बात कर रही थी कह रही थी कि गर्मी का तो मौसम है फिर भी एक पतली सी चद्दर ले लेना नया गांव है नया शहर है कहीं तुझे ठंड लग गई तो और ऐसे ही संभाल संभाल के वह सारी चीजें पैक करवा रहे थे
और अपने गांव से दूर करीब 200 किलोमीटर से भी ज्यादा वह सुनीता की नौकरी के स्थान पर पहुंचते हैं वहां आज उसकी गवर्नमेंट जॉब का पहला दिन था और गवर्नमेंट में तो उसे कॉल लेटर भी दे दिया था बस अब वहां उसे अपनी हाजिरी देनी थी तो उसके लिए वह बहुत ही उत्सुक थी सुनीता अपने पापा से पूछ रही थी कि पापा मैं आपसे दूर होने जा रही हूं इसी बात से मुझे डर लग रहा है तब उन्होंने सुनीता को समझाते हुए कहा अरें बेटी ऐसा नहीं सोचते तुम्हें नौकरी मिल गई ना यही हमारे लिए खुशी की बात है
सुनीता के पापा एक छोटे से किसान थे जो उसकी कुछ खेती-बाड़ी थी और उसी में उसका गुजारा हो रहा था सुनीता पढ़ने में होशियार थी इसीलिए उसने मास्टर और साथ में टीचिंग कोर्स कर के टीचर की जॉब के लिए तैयारी की थी और सरकारी कॉन्पिटिटिव एग्जाम देकर आज वह पहली दफा अपनी जोब की जगह पर जा रही थी अपने स्कूल पर जा रही थी वह इतनी खुश थी कि मानो जैसे वह मन में गुनगुना रही थी ए जिंदगी गले लगा ले और अपनी कार की विंडो में से बार-बार काच खोलकर मुस्कुराकर जैसे वह गीत के शब्दों को गुनगुना रही थी
अब सुनीता और उसके पापा उसकी नौकरी के स्थल पर पहुंच जाते हैं और वहां उनकी मुलाकात उनके प्रिंसिपल से होती है और उनके प्रिंसिपल कहते हैं कि आइए आइए खाने का समय हो गया है आपके लिए हमने खाने का ऑर्डर दे दिया है खाना खा कर जाना है सुनीता को तो लगाकी वाह कितना अच्छा स्कूल है कितने अच्छे प्रिंसिपल है फिर सुनीता को वह बाहर दूसरी टीचर के साथ स्कूल दिखाने के लिए भेजते हैं और उसके पापा के साथ मीटिंग करते हैं और उसके पापा को कहते हैं कि अगर सुनीता को यहां स्कूल में ज्वाइन करवाना है तो आप समझ रहे हैं ना बस इतनी बात कहते हैं और सुनीता के पापा कहते हैं कि लेकिन इसे तो गवर्नमेंट ने हीं कॉल लेटर दिया है तब प्रिंसिपल कहते अरे नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं होता सब गवर्नमेंट स्कूल में भी सभी को पता है इस तरह चलता है आपको तो कुछ तो देना ही होगा अगर आप चाहे तो किस्तों में भी दे सकते हैं ऐसा जरूरी नहीं कि एक साथ दे दीजिए लेकिन जब सुनीता के पापा ने इतनी बड़ी रकम सुनी तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई वह अपने आपको जैसे बहुत ही कमजोर समझने लगे मानसिक तौर से वह टूट गए और जब सुनीता बाहर से आई तो उसने अपने पापा का चेहरा देखा कि कुछ बात तो है उसने अपने पापा से कहा कि क्या हुआ पापा तो उसके पापा को पता था कि सुनीता नहीं मानेगी इसलिए उसके पापा ने उससे कहा कि नहीं बेटा कुछ बात नहीं है और फिर प्रिंसिपल कहते हैं कि चलीए खाने के लिए हमारे यहां का खाना बहुत ही बढ़िया होता है आप एक बार देखिएगा और अगर खाने खाना अगर आप चले गए ना तो हमें अच्छा नहीं लगेगा इसी तरह बेईमानी में भी अपनी ईमानदारी पेश करते हुए प्रिंसिपल को देखते हुए सुनीता के पापा अचंभित हो गए......